“युवाओं में ट्रेडिंग का बढ़ता क्रेज: जोखिम और सच्चाई”

आजकल शेयर बाजार में निवेश और ट्रेडिंग का क्रेज युवाओं के बीच तेजी से बढ़ रहा है। पहले जहां सिर्फ कुछ लोग ही शेयर बाजार में पैसा लगाते थे, वहीं अब बड़ी संख्या में युवा इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इनमें से कई युवा पूरी तरह रिसर्च करके और विशेषज्ञों की सलाह लेकर निवेश कर रहे हैं, लेकिन बहुत से ऐसे भी हैं जो बिना तैयारी के, जल्दी पैसा कमाने की चाहत में शेयर बाजार में हाथ आजमा रहे हैं।

युवा और शेयर बाजार का आकर्षण

आज के युवा तेजी से पैसे कमाने के तरीके खोज रहे हैं, और शेयर बाजार उन्हें इस दिशा में सबसे आकर्षक माध्यम लगता है। सोशल मीडिया, फिनफ्लुएंसर और ऑनलाइन ट्रेडिंग ऐप्स ने भी इस आकर्षण को बढ़ावा दिया है। कई युवा यह समझते हैं कि थोड़े से निवेश से वे बड़े लाभ कमा सकते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में वे बाजार के जोखिमों को नजरअंदाज कर देते हैं। कई तो उधार लेकर या संदिग्ध ऐप्स से कर्ज लेकर भी निवेश कर रहे हैं, जिसके चलते वे भारी नुकसान का सामना कर रहे हैं।

जोखिम और नुकसान: एक गंभीर समस्या

शेयर बाजार में निवेश करने से पहले उसके जोखिमों को समझना बहुत जरूरी है, लेकिन कई युवा इस महत्वपूर्ण पहलू को नजरअंदाज कर देते हैं। SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंट्राडे ट्रेडिंग में 71% लोग नुकसान उठा रहे हैं। इंट्राडे ट्रेडिंग वह प्रक्रिया है जिसमें एक ही दिन में शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं। इस प्रकार की ट्रेडिंग में छोटे-छोटे मुनाफों पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन जोखिम बहुत ज्यादा होता है।

एक उदाहरण के तौर पर, असम के एक 18 वर्षीय BTech छात्र आनंद ने 20 लाख रुपये इंट्राडे ट्रेडिंग में गंवा दिए। उसने अपने दोस्तों से कर्ज लेकर और कुछ संदिग्ध ऐप्स से लोन लेकर ट्रेडिंग की थी। उसके दोस्त ने उसे एक साल में करोड़पति बनने का दावा किया था, और आनंद उसकी बातों में आकर ट्रेडिंग के चक्कर में फंस गया। कुछ महीनों में ही वह भारी नुकसान में चला गया, और बाद में उसने 26 लाख रुपये का और नुकसान झेला।

‘रिस्क है तो इश्क है’ का असली सच

फिल्मों में ‘रिस्क है तो इश्क है’ जैसा डायलॉग सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन असल जिंदगी में इसका उल्टा ही असर होता है। FY19 में जहां केवल 15 लाख लोग इंट्राडे ट्रेडिंग करते थे, वहीं FY23 तक यह संख्या बढ़कर 69 लाख हो गई। इसमें भी 30 साल से कम उम्र के युवाओं की भागीदारी 18% से बढ़कर 48% हो गई है। हालांकि, SEBI की रिपोर्ट यह भी बताती है कि FY23 में 71% इंट्राडे ट्रेडर्स को नुकसान उठाना पड़ा है।

फ्यूचर्स और ऑप्शन्स (F&O) ट्रेडिंग में भी बड़े पैमाने पर युवा भागीदारी बढ़ी है, लेकिन इस क्षेत्र में भी 93% रिटेल ट्रेडर्स को नुकसान हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति औसतन 2 लाख रुपये तक का नुकसान झेल रहा है।

फिनफ्लुएंसर और सोशल मीडिया का प्रभाव

आजकल सोशल मीडिया और फिनफ्लुएंसर ने शेयर बाजार में निवेश को एक फैशन बना दिया है। कई लोग, जिन्हें शेयर बाजार की गहराई से जानकारी नहीं है, सोशल मीडिया के इन तथाकथित ‘फिनफ्लुएंसर’ की बातों में आकर जल्दी अमीर बनने के सपने देखते हैं। ये फिनफ्लुएंसर बहुत ही आसान शब्दों में ट्रेडिंग की जटिल प्रक्रियाओं को समझाते हैं और यह दावा करते हैं कि आप कम समय में बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।

ट्रेडिंग की लत: एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य मुद्दा

वडोदरा के मनोचिकित्सक डॉ. पार्थ सोनी के अनुसार, ट्रेडिंग से मिलने वाला ‘डोपामाइन हिट’ जुए की लत जैसा होता है। शुरुआत में जब किसी को मुनाफा होता है, तो वे और अधिक ट्रेडिंग करने की ओर प्रेरित होते हैं। धीरे-धीरे यह एक लत में बदल जाता है, और लोग अपने नुकसान को कवर करने के लिए अधिक निवेश करने लगते हैं। इसे ‘रिवेंजट्रेडिंग’ कहते हैं, जिसमें नुकसान झेलने के बाद लोग यह सोचकर ट्रेडिंग करते रहते हैं कि वे अपना नुकसान पूरा कर लेंगे। दूसरी ओर, ‘FOMO ट्रेडिंग’ तब होती है, जब लोग अपने आस-पास के लोगों को पैसे कमाते देख खुद भी ट्रेडिंग करने लगते हैं।

ट्रेडिंग की लत का इलाज

बेंगलुरु स्थित सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (SHUT) क्लिनिक में अब ऐसे लोग आ रहे हैं जो ट्रेडिंग की लत से परेशान हैं। डॉ. मनोज कुमार शर्मा, जो इस क्लिनिक के कोऑर्डिनेटर हैं, कहते हैं कि ट्रेडिंग की लत अब जुए और शराब की लत जैसी ही बीमारी बनती जा रही है। लोग मानसिक और आर्थिक रूप से इसके चंगुल में फंस जाते हैं और उन्हें बाहर निकलने के लिए चिकित्सा सहायता की जरूरत होती है।

डॉ. शर्मा के क्लिनिक में कई ऐसे मामले आए हैं, जिनमें लोग लाखों रुपये का नुकसान झेल चुके हैं और उनके परिवार उन्हें डी-एडिक्शन क्लीनिक में लेकर आए हैं। इलाज में आमतौर पर दो से छह महीने लगते हैं और इसमें मनोवैज्ञानिक सहायता के साथ-साथ आर्थिक परामर्श भी दिया जाता है।

अनुभव की आवश्यकता

अनुभवी निवेशक विवेक बजाज का मानना है कि इस समस्या की एक बड़ी वजह यह भी है कि बेरोजगारी बढ़ी है और कई विज्ञापन युवाओं को तेजी से अमीर बनने के झांसे में डालते हैं। बजाज कहते हैं कि ट्रेडिंग एक ऐसा कौशल है जिसे सीखने में सालों का समय लगता है, ठीक वैसे ही जैसे डॉक्टर या वकील बनने में सालों का अभ्यास लगता है।

निष्कर्ष

शेयर बाजार में निवेश करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन इसके लिए गहराई से समझ और रिसर्च की जरूरत होती है। युवाओं को चाहिए कि वे बिना अनुभव के जल्दबाजी में निवेश न करें, और विशेषज्ञों की सलाह पर ही कदम बढ़ाएं। सही मार्गदर्शन और धैर्य से ही वे शेयर बाजार में सफल हो सकते हैं, अन्यथा वे अपने भविष्य को जोखिम में डाल सकते हैं।

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